अनुसूचित जनजातियां कौन है?
संविधान निर्माताओं के ध्यान में यह तथ्य आया कि देश में कुछ समुदाय आदिम कृषीय प्रथा, अवसंरचनात्मक सुविधाओं की कमी एवं भौगोलिक पृथक्करण के कारण आदिकाल से चली आ रही कृषीय प्रथाओं और कुछ अन्य कारणों से अत्यन्त सामाजिक शैक्षणिक और आर्थिक पिछड़ेपन से पीड़ित थे। भारत के संविधान का अनुच्छेद 366(25) यह परिनिर्धारित करता है कि अनुसूचित जनजातियों का अर्थ ऐसी जनजातियों या जनजातीय समुदायों से है जिन्हें संविधान के अनुच्छेद 342 के अन्तर्गत अनुसूचित जनजाति होना माना गया है। .
अनुच्छेद 342 निम्नवत है:-
342(1) अनुसूचित जनजातियाँ -- राष्ट्रपति, किसी राज्य या संघ राज्यक्षेत्र के संबंध में जहाँ वह राज्य है वहाँ उसके राज्यपाल से परामर्श करने के पश्चात् लोक अधिसूचना द्वारा, उन जनजातियों या जनजाति समुदायों अथवा जनजातियों या जनजाति समुदायों के भागों या उनमें के समूहों को विनिर्दिष्ट कर सकेगा, जिन्हें इस संविधान के प्रयोजनों के लिए, यथास्थिति उस राज्य या संघ राज्य क्षेत्र के संबंध में अनुसूचित जनजातियाँ समझा जाएगा।
(2) संसद, विधि द्वारा, किसी जनजाति या जनजाति समुदाय को अथवा किसी जनजाति या जनजाति समुदाय के भाग या उसमें के समूह को खंड (1) के अधीन निकाली गई अधिसूचना में विनिर्दिष्ट अनुसूचित जनजातियों की सूची में सम्मिलित कर सकेगी या उसमें से अपवर्जित कर सकेगी, किन्तु जैसा ऊपर कहा गया है उसके सिवाय उक्त खंड के अधीन निकाली गई अधिसूचना में किसी पश्चात्वर्ती अधिसूचना द्वारा परिवर्तन नहीं किया जाएगा।
एक अनुसूचित जनजाति के रूप में समुदाय के विशिष्टिकरण के लिए मानदण्ड
चूंकि संविधान एक अनुसूचित जनजाति के रूप में समुदाय के विशिष्टिकरण के लिए मानदण्ड के बारे में मौन है। अनुच्छेद 342 में शब्द एवं पदबंध ‘किसी जनजाति या जनजाति समुदाय को अथवा किसी जनजाति या जनजाति समुदाय के भाग या उसमें के समूह’’ को पिछड़ेपन की उनकी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के संदर्भ में समझना होगा। इन कारणों के कारण आदिमता, भौगोलिक एकाकीपन, संकोच एवं सामाजिक, शैक्षणिक एवं आर्थिक पिछड़ापन उनकी विशेषता है जो अन्य समुदायों से हमारे देश की अनुसूचित जनजातीय समुदायों से भिन्न करता है। 1931 की जनगणना में अपनायी गयी जनजातीय समुदायों की परिभाषाओं को भी ध्यान में रखना होगा। ये तथ्य अनुच्छेद 342(1) के प्रावधानों का आधार हैं जो उन जनजातियों या जनजाति समुदायों अथवा जनजातियों या जनजाति समुदायों के भागों या उनमें के समूहों को विनिर्दिष्ट कर सकेगा, यथास्थिति उस राज्य या संघ राज्य क्षेत्र के संबंध में अनुसूचित जनजातियाँ समझा जाएगा, का अधिदेश देता है। अनुसूचित जनजातियों की सूची राज्य/संघ शासित क्षेत्र- विशिष्ट है और एक राज्य में एक अनुसूचित जाति के रूप में घोषित एक समुदाय के बारे में बारे में ऐसा नहीं कि वह अन्य राज्य में भी घोषित हो। संविधान के अनुच्देद 342 के खण्ड 1 के अन्तर्गत राष्ट्रपतीय अधिसूचनाएं संवैधानिक आदेशों के रूप में जारी होती हैं। दो संवैधानिक आदेश आरंभत: राज्यों के उन दो विशिष्ट वर्गों के संबंध में जारी किए गए थे जो भारत के संविधान के अंगीकरण के समय विद्यमान थे। वे हैं:
क्रम सं. |
आदेश का नाम |
अधिसूचना या आदेश की तारीख |
उस राज्य का नाम जिसके लिए आदेश लागू है (अधिसूचना की तारीख पर विद्यमान) |
(1) |
(2) |
(3) |
(4) |
१. |
संविधान (अनुसूचित जनजातियां) आदेश, 1950 (संवैधानिक आदेश 22) |
06.09.1950 |
असम, बिहार, मुम्बई, मध्य प्रदेश, मद्रास, उड़ीसा, पंजाब, पश्चिम बंगाल, हैदराबाद, मध्य भारत, मैसूर, राजस्थान, सौराष्ट्र और ट्रावनकोर- कोचीन |
२. |
संविधान (अनुसूचित जनजातियां) (भाग- ग राज्य) आदेश, 1951
(संवैधानिक आदेश 33) |
20.09.1951 |
अजमेर, भोपाल, कुर्ग, हिमाचल प्रदेश, कच्छ, मणिपुर, त्रिपुरा और विन्धया प्रदेश
|
क्या अनुसूचित जनजातियों को विनिर्दिष्ट करने वाले संवैधानिक आदेशों में संशोधन किया गया है?
राज्य पुनर्गठन अधिनियम, 1956 (1956 का अधिनियम 37) द्वारा 1956 में राज्यों के पुनर्गठन के फलस्वरूप उपरोक्त 2 संवैधानिक आदेश अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आदेश (संशोधन) अधिनियम, 1956 (1956 का अधिनियम 63) दिनांक 25 सितम्बर, 1956 की धारा 4(i) और 4(ii) के तहत संशोधित किए गए थे। राज्य पुनर्गठन अधिनियम की धारा 41 और बिहार एवं पश्चिम बंगाल (क्षेत्रों का हस्तान्तरण) अधिनियम, 1956 (1956 का 40) का अनुसरण करते हुए, राष्ट्रपति ने अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति सूचियां (संशोधन) आदेश, 1956 जारी किया। संविधान (अनुसूचित जनजातियां) आदेश, 1950 को सूची संशोधन आदेश, 1956 की धारा 3(1) के तहत संशोधित किया गया जबकि संविधान अनुसूचित जनजातियां (भाग ग राज्य) आदेश, 1951 को सूची संशोधन आदेश, 1956 की धारा 3(2) के तहत संशोधित किया गया।
अन्य पिछड़ा वर्गों के विशिष्टिकरण के लिए विभिन्न वर्गों की मांग को दृष्टिगत रखते हुए प्रथम पिछड़ा वर्ग आयोग (काका कालेलकर की अध्यक्षता में) 1955 में गठित किया गया था। कालेलकर आयोग ने अपनी रिपोर्ट 1956 में प्रस्तुत की। आयोग ने अनुसूचित जनजातियों को भी अन्य पिछड़े वर्गों में शामिल करने की सिफारिश की थी। इसके अतिरिक्त संविधान अनुसूचित जनजाति आदेश की संशोधन की प्रक्रिया के माध्यम से अनुसूचित जनजातियों की सूची में नये समुदायों के विशिष्टिकरण की मांग की जांच के लिए अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (लोकुर समिति) की सूचियों के संशोधन पर एक सलाहकार समिति 1965 में बनायी गयी थी। उसके बाद संसद में प्रस्तुत संविधान आदेशों के संशोधन के लिए एक प्रारूप विधेयक अनुसूचित जातियां एवं अनुसूचित जनजातियां आदेश (संशोधन) विधेयक, 1967 (चंदा समिति) पर संसद की संयुक्त चयन समिति को भेजा गया था। एक अनुसूचित जनजाति के रूप में पहचान करने के लिए एक समुदाय हेतु निम्नलिखित आवश्यक विशेषताएं स्वीकार की गई:-
(i) एकान्त और दुर्लभ पहुंच वाले क्षेत्रों में जीवन एवं आवास का आदिम स्वरूप,
(ii) विशिष्ट संस्कृति,
(iii) बड़े स्तर पर समुदाय के साथ सम्पर्क करने में संकोच
(iv) भौगोलिक एकाकीपन, और
(v) सभी दृष्टि से सामान्य पिछड़ापन
अनुसूचित जनजातियों की सूची में कुछ समुदायों के प्रवेशन के लिए मांग पर विचारण करने के लिए और उपरोक्त मानदण्ड को ध्यान में रखते हुए संविधान आदेश संविधान अनुसूचित जातियां और अनुसूचित जनजातियां आदेश (संशोधन) अधिनियम 1976 (1976 का संख्या 108) के द्वारा व्यापक रूप से संशोधित किए गए थे जबकि कुछ राज्यों के संबंध में नये संविधान आदेश भी जारी किए गए थे।
अनुसूचित जनजातियों की सूची में प्रवेशन या निष्कासन के लिए संशोधित प्रक्रिया
जून 1999 में अनुसूचित जनजातियों की सूची में प्रवेशन या निष्कासन पर दावों पर निर्णय करने के लिए निम्नलिखित औपचारिकताओं का उल्लेख किया गया है:-
- केवल वे दावे जिन पर संबंधित राज्य सरकारें सहमत हैं, भारत के महापंजीयक और राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग मामले पर विचार करते हैं।
- जब कभी राज्य/संघ शासित क्षेत्र की अनुसूचित जनजातियों की सूची में किसी समुदाय के प्रवेषण के लिए मंत्रालय में अभ्यावेदन प्राप्त होते हैं तो मंत्रालय उन अभ्यावेदनों को संविधान के अनुच्छेद 342 के अन्तर्गत अपेक्षित सिफारिश के लिए संबंधित राज्य सरकार/ संघ शासित क्षेत्र प्रशासन को भेज देता है।
- यदि संबंधित राज्य सरकार प्रस्ताव की सिफारिश करती है तो उसे भारत के महापंजीयक को उनकी टिप्पणियों/विचारों के लिए भेज दिया जाता है।
- भारत के महापंजीयक, यदि राज्य सरकार की सिफारिशों से संतुष्ट हैं यह सिफारिश हैं कि प्रस्ताव को केन्द्र सरकार के पास भेज दिया जाए।
- उसके बाद, सरकार प्रस्ताव को राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के पास उनकी सिफारिश के लिए भेज देती है।
- यदि राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग भी मामले की सिफारिश करता है तो मामला संबंधित प्रशासनिक मंत्रालयों के परामर्श के बाद मंत्रिमंडल के निर्णय के लिए भेजा जाता है। उसके बाद, मामले को राष्ट्रपतीय आदेश में संशोधन के लिए एक विधेयक के रूप में संसद के समक्ष लाया जाता है।
- प्रवेशन, निष्कासन या अन्य संशोधन के लिए दावे जिसको न तो भारत के महापंजीयक और न ही संबंधित राज्य सरकारों ने समर्थन दिया है, को राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग को नहीं भेजा जाएगा। इसे सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के स्तर पर अस्वीकृत कर दिया जाएगा।
- यदि राज्य सरकार और भारत के महापंजीयक के विचारों के बीच असहमति है तो भारत के महापंजीयक के विचारों को राज्य सरकारों के पास आगे उनकी सिफारिशों को न्यायोचित ठहराने के लिए भेज दिया जाएगा। राज्य सरकार/संघ शासित प्रशासन से स्पष्टीकरण प्राप्त होने पर, प्रस्ताव को पुन: टिप्प्णी के लिए भारत के महापंजीयक को भेजा जाता है। ऐसे मामलों में जहां भारत के महापंजीयक द्वितीय संदर्भ में राज्य सरकार/संघ शासित क्षेत्र प्रशासन के विचार के बिन्दुओं पर सहमत नहीं है वहां भारत सरकार ऐसे प्रस्ताव की अस्वीकृति पर विचार कर सकती है।
- उसी प्रकार उन मामलों में जहां राज्य सरकार और भारत के महापंजीयक प्रवेशन/ निष्कासन के पक्ष में है लेकिन उस पर राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग का समर्थन नहीं है तो उसे अस्वीकृत कर दिया जाएगा।
- राष्ट्रीय आयोग द्वारा स्वत: सिफारिश किए गए दावों को भारत के महापंजीयक और राज्य सरकारों को भेजा जाएगा। उनके प्रत्युतर पर निर्भर रहते हुए, उन्हें यथासंभव लागू औपचारिकताओं के अनुरूप निस्तारित किया जाएगा।
अब तक पारित सभी संविधान आदेशों और संशोधन अधिनियमों की एक सूची परिशिष्ट-1में दी गई है:-
अभी तक कितनी अनुसूचित जनजातियों की पहचान की गई है?
देश में विभिन्न राज्यों और संघ शासित क्षेत्रों में 700 से भी अधिक जनजातियां (एक राज्य से भी अधिक में अधिव्यापित समुदायों सहित) फैली हुई हैं जिन्हें भारत के संविधान के अनुच्छेद 342 के अन्तर्गत अधिसूचित किया गया है। अधिक संख्या में प्रमुख जनजातियां समुदाय (62) उड़ीसा राज्य में विनिर्दिष्ट हैं। हरियाणा, पंजाब, चंडीगढ़, दिल्ली और पांडिचेरी को छोड़कर सभी राज्यों एवं संघ शासित क्षेत्रों के संबंध में अनुसूचित जनजातियों को विनिर्दिष्ट किया गया है। .
अनुसूचित जनजातियों के क्या अधिकार हैं?
भारत का संविधान अपने सभी नागरिकों को अन्य बातों के साथ-साथ सामाजिक एवं आर्थिक न्याय, स्तर एवं अवसर की समानता और व्यक्ति की गरिमा सुनिश्चित करता है। संविधान में या भारत की किसी विधि या सरकार के किसी आदेश में उल्लिखित भारत के नागरिकों को उपलब्ध सभी अधिकार, समान रूप से अनुसूचित जनजातियों को भी उपलब्ध है।
क्या अनुसूचित जनजातियों के लिए कोई अन्य अधिकार या विशेषाधिकार हैं?
शेष जनसंख्या से अलग-थलग और पिछड़ा होने के कारण अनुसूचित जनजातियां अपने अधिकारों का प्रयोग करने के लिए समर्थ नहीं हैं। अपने अधिकारों को प्रयोग करने में समर्थ बनाने के लिए उन्हें सशक्त बनाने के संबंध में संविधान में विशेष प्रावधान किए गए हैं। संविधान निर्माताओं में इस तथ्य की ओर ध्यान दिया और आरक्षण के रूप में संविधान में समर्थ बनाने वाले प्रावधान समाविष्ट किए और अवसरों का लाभ लेने के लिए समर्थ बनाने में उन्हें सशक्त करने के लिए मानदण्ड बनाये। कुछ व्यक्तियों ने उन्हें अनुसूचित जनजातियों के लिए विशेषाधिकार के रूप में माना लेकिन ये केवल उन्हें समर्थ बनाने वाले प्रावधान है ताकि अनुसूचित जनजातियां अवसर प्राप्त कर सके और आपने अधिकारों और सुरक्षणों का प्रयोग कर सके।
अनुसूचित जनजातियों के विकास के लिए संवैधानिक प्रावधान क्या है?
संविधान का अनुच्छेद 46 प्रावधान करता है कि राज्य समाज के कमजोर वर्गों में शैक्षणिक और आर्थिक हितों विशेषत: अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों का विशेष ध्यान रखेगा और उन्हें सामाजिक अन्याय एवं सभी प्रकार के शोषण से संरक्षित रखेगा। शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण का प्रावधान अनुच्छेद 15(4) में किया गया है जबकि पदों एवं सेवाओं में आरक्षण का प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 16(4), 16(4क) और 16(4ख) में किया गया है। विभिन्न क्षेत्रों में अनुसूचित जनजातियों के हितों एवं अधिकारों को संरक्षण एवं उन्नत करने के लिए संविधान में कुछ अन्य प्रावधान भी समाविष्ट किए गए हैं जिससे कि वे राष्ट्र की मुख्य धारा से जुड़ने में समर्थ हो सके।
अनुच्छेद 23 जो देह व्यापार, भिक्षावृत्ति और बलातश्रम को निषेध करता है, का अनुसूचित जनजातियों के लिए विशेष महत्व है। इस अनुच्छेद का अनुसरण करते हुए, संसद ने बंधुआ मजदूर प्रणाली (उन्मूलन) अधिनियम, 1976 अधिनियमित किया। उसी प्रकार, अनुच्छेद 24 जो किसी फैक्ट्री या खान या अन्य किसी जोखिम वाले कार्य में 14 वर्ष से कम आयु वाले बच्चों के नियोजन को निषेध करता है, का भी अनुसूचित जनजातियों के लिए विशेष महत्व है क्योंकि इन कार्यों में संलग्न बाल मजदूरों का अत्यधिक भाग अनुसूचित जनजातियों का ही है। संविधान की 5वीं और 6वीं अनुसूचियों में उल्लिखित प्रावधानों के साथ पठित अन्य विशिष्ट सुरक्षण अनुच्छेद 244 में उपल्ब्ध हैं:-
- अनुच्छेद 164(1) उपबंध करता है कि छत्तीसगढ़, झारखण्ड, मध्य प्रदेश और उड़ीसा राज्यों में जनजातियों के कल्याण का भारसाधक एक मंत्री होगा जो साथ ही अनुसूचित जातियों और पिछड़े वर्गों के कल्याण का या किसी अन्य कार्य का भी भारसाधक हो सकेगा।
- अनुच्छेद 243घ पंचायतों में अनुसूचित जनजातियों के लिए सीटों के आरक्षण का उपबंध करता है।
- अनुच्छेद 330 लोक सभा में अनुसूचित जनजातियों के लिए सीटों के आरक्षण का उपबंध करता है।
- अनुच्छेद 332 विधान सभाओं में अनुसूचित जनजातियों के लिए सीटों के आरक्षण का उपबंध करता है।
- अनुच्छेद 334 प्रावधान करता है कि लोक सभा और राज्य विधानसभाओं (और लोक सभा और राज्य विधान सभाओं में नामांकन द्वारा एंग्लो-इंडियन समुदायों का प्रतिनिधित्व) में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए सीटों का आरक्षण जनवरी 2010 तक जारी रहेगा।
- अनुच्छेद 371क नागालैंड राज्य के संबंध में विशेष प्रावधान करता है।
- अनुच्छेद 371ख असम राज्य के संबंध में विशेष प्रावधान करता है।
- अनुच्छेद 371ग मणिपुर राज्य के संबंध में विशेष प्रावधान करता है।
- अनुच्छेद 371च सिक्किम राज्य के संबंध में विशेष प्रावधान करता है।
अनुसूचित जनजातियों के लिए संस्थागत सुरक्षण क्या है?
अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए विशेष अधिकारी (आयुक्त)
अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों के लिए संविधान में उपलब्ध विभिन्न सुरक्षणों और विविध अन्य सुरक्षात्मक विधायनों के लिए प्रभावी कार्यान्वयन के लिए संविधान निर्माता जागरूक थे, संविधान का अनुच्छेद 338 एक विशेष अधिकारी की नियुक्ति का प्रावधान करता है। एक विशेष अधिकारी जिसे अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों के लिए आयुक्त के रूप में पदनामित किया गया है, को विभिन्न संविधियों में अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों के लिए सुरक्षणों से संबंधित सभी मामलों में अन्वेषण करने और इन सुरक्षणों के कार्यकरण पर राष्ट्रपति को प्रतिवेदन देने का कर्तव्य सौंपा गया है। अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों के लिए प्रथम आयुक्त की नियुक्ति 18 नवम्बर 1950 में की गई थी।
अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आयोग
संसद सदस्यों एवं अन्यों की दृढ़ मांग पर कि मात्र अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आयुक्त का कार्यालय संवैधानिक सुरक्षणों के कार्यान्वयन की निगरानी के लिए पर्याप्त नहीं था, एक सदस्य प्रणाली के स्थान पर बहुसदस्यीय प्रणाली की व्यवस्था करने के लिए संविधान के अनुच्छेद 338 में संशोधन हेतु एक प्रस्ताव लाया गया जब अनुच्छेद 338 में संशोधन विचाराधीन था तो सरकार ने गृह मंत्रालय की संकल्प संख्या 13013/9/77-एससीटी(1) दिनांकित 21-07-1978 के तहत एक प्रशासनिक निर्णय के माध्यम से एक बहुसदस्यीय आयोग की स्थापना का निर्णय लिया। प्रथम अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आयोग श्री भोला पासवान शास्त्री की अध्यक्षता तथा अन्य चार सदस्यों सहित अगस्त 1978 में स्थापित किया गया।
राष्ट्रीय अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आयोग (परामर्शदात्री)
समाज कल्याण मंत्रालय के संकल्प संख्या बीसी-13015/12/86-एससीडी-VI दिनांकित 01-09-1987 के तहत अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आयोग को राष्ट्रीय अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आयोग के रूप में नामित किया गया। इस संकल्प में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आयुक्त और राष्ट्रीय अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आयोग के कार्यों का भी उल्लेख किया गया है। यह निर्णय लिया गया था कि केवल अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आयुक्त राष्ट्रपति को रिपोर्ट प्रस्तुत करेगा और राष्ट्रीय अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आयोग अध्ययन का कार्य करेगा और अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों के स्तर एवं वृहत नीति मुद्दों पर सरकार को सलाह देने के लिए एक राष्ट्रीय स्तर परामशदात्री निकाय के रूप में कार्य करेगा और अपनी रिपोर्ट केन्द्र सरकार को प्रस्तुत करेगा।
राष्ट्रीय अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आयोग (संवैधानिक)
राष्ट्रीय अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आयोग को संविधान (65वां संशोधन) अधिनियम, 1990 के पारित होने के परिणामस्वरूप संवैधानिक दर्जा दिया गया। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और सदस्यों से संबंधित नियमों को 03-11-1990 को अधिसूचित किया गया और संविधान (65वां संशोधन) अधिनियम के अन्तर्गत प्रथम संवैधानिक राष्ट्रीय अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आयोग 12-03-1992 को गठित किया गया था और उसी तारीख से अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आयुक्त के कार्यालय को समाप्त कर दिया गया था।
राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग
संविधान के अनुच्छेद 338 को पुन: संशोधित किया गया और एक नया अनुच्छेद 338क संविधान (89वां संशोधन) अधिनियम 2003 के तहत संविधान में समाविष्ट किया गया जो दिनांक 19-02-2004 की अधिसूचना के तहत 19-02-2004 को लागू हुआ। अनुच्छेद 338 में संशोधन के परिणामस्वरूप राष्ट्रीय अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आयोग समाप्त हो गया और राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग संशोधित अनुच्छेद 338 के प्रावधान के अन्तर्गत स्थापित किया गया और राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग अनुच्छेद 338क के प्रावधान के अन्तर्गत स्थापित किया गया।
राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के कार्य एवं कर्तव्य क्या है?
राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग भारत के संविधान में एक नया अनुच्छेद 338क प्रविष्ट करके सृजित किया गया है। अनुच्छेद 338क अन्य बातों के साथ-साथ राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग पर संविधान या किसी अन्य विधि या सरकार के किसी आदेश के अन्तर्गत अनुसूचित जनजातियों के लिए उपलब्ध सुरक्षणों के संबंध में सभी मामलों की निगरानी करने, और अनुसूचित जनजातियों के समाजार्थिक विकास की योजना प्रक्रिया में भागीदार होने और सलाह देने, और संघ एवं किसी राज्य के अन्तर्गत उनके विकास की प्रक्रिया का आकलन करने, और राष्ट्रपति को जैसा आयोग उचित समझे वार्षिक रूप से और ऐसे अन्य समय पर उन सुरक्षणों के कार्यान्वयन पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करने का दायित्व सौंपा गया है। 338क (5) के अन्तर्गत समनुदेशित कर्तव्य निम्नवत हैं:-
- अनुसूचित जनजातियों के लिए इस संविधान या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि या सरकार के किसी आदेश के अधीन उपबंधित सुरक्षणों से संबंधित सभी विषयों का अन्वेषण और अनुवीक्षण करना तथा ऐसे सुरक्षणों के कार्यकरण का मूल्यांकन करना
- अनुसूचित जनजातियों को उनके अधिकारों और सुरक्षणों से वंचित करने से संबंधित विशिष्ट शिकायतों की जांच करना
- अनुसूचित जनजातियों के सामाजिक-आर्थिक विकास की योजना प्रक्रिया में भाग लेना और सलाह देना तथा संघ और किसी राज्य के अधीन उनके विकास की प्रगति का मूल्यांकन करना
- उन सुरक्षणों के कार्यकरण के बारे में प्रतिवर्ष, और ऐसे अन्य समयों पर, जो आयोग ठीक समझे, राष्ट्रपति को प्रतिवेदन पेश करना
- अनुसूचित जनजातियों के सुरक्षण, कल्याण एवं समाजार्थिक विकास के लिए उन सुरक्षणों और अन्य उपायों के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए किसी संघ या राज्य द्वारा किए जाने के लिए ऐसे रिपोर्टों, सिफारिशों और उपायों को करना
- अनुसूचित जनजातियों के संरक्षण, कल्याण, विकास तथा उन्नयन के संबंध में अन्य कार्यों का निपटान करना जो राष्ट्रपति, संसद द्वारा बनाए गए किसी विधि के उपबंधों के अधीन रहते हुए, नियम द्वारा विनिर्दिष्ट
राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग अनुच्छेद 338क के खण्ड (5) के उपखण्ड (च) द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए जनजातीय कार्य मंत्रालय की दिनांक 23-08-2005 की अधिसूचना के तहत राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग को कुछ अतिरिक्त कार्य सौंपे गए हैं। ये कर्तव्य निम्नलिखित से संबंध है:-
आयोग से निम्नलिखित अन्य कृत्यों का निर्वहन करेगा, नामत:-
- वन क्षेत्रों में रहने वाले अनुसूचित जनजातियों के लिए गौण वन उत्पाद के संबंध में स्वामित्व अधिकार प्रदान करने की आवश्यकता हेतु उपाय किए जाने चाहिए।
- खनिज संसाधनों, जल संसाधनों आदि पर कानून के अनुसार जनजातीय समुदायों को सुरक्षण अधिकार प्रदान करने के उपाय करना।
- जनजातियों के विकास के लिए ओर अधिक विकासक्षम जीविका संबंधी युक्तियों के कार्यान्वन के लिए उपाय करना
- विकास परियोजनाओं द्वारा विस्थापित जनजातीय समूहों के लिए राहत एवं पुनर्वास उपायों की प्रभावोत्पादक्ता में सुधार करना।
- भूमि से जनजातीय लोगों के हस्तान्तरण को रोकने संबंधी उपाय करना और ऐा व्यक्तियों को प्रभाव पूर्ण तरीके से पुनर्स्थापित करना जिनके मामले में हस्तान्तरण प्रक्रिया पहले ही हो चुकी है।
- वनों का संरक्षण करने और सामाजिक वनरोपण का दायित्व लेने के लिए जनजाति समुदायों का अधिकतम सहयोग प्राप्त करने तथा उन्हें शामिल करने के लिए उपाय करना।
- पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तारित) अधिनियम, 1996 (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तारित) के उपबंधों के सम्पूर्ण कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के उपाय करना।
- जनजातीय व्यक्यों द्वारा सिफ्टिंग खेती की प्रथा को पूर्णतः समाप्त करने तथा कम करने के उपाय करना जिससे भूमि और पर्यावरण लगातार कमजोर एवं क्षय होता है।
राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग का गठन क्या है?
राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग में एक अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष और तीन अन्य सदस्य हैं। कम से कम एक सदस्य की नियुक्ति महिलाओं में से होगी। आयोग के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाएगी। अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और अन्य सदस्य अपने कार्यभार ग्रहण करने की तारीख से तीन वर्ष की पदावधि तक पद धारण करेंगे।
राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और तीन अन्य सदस्यों की सेवा शर्त्तें एवं पदावधि क्या हैं?
राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और तीन अन्य सदस्यों की सेवा शर्त्तें एवं पदावधि 20 फरवरी, 2004 को जनजातीय कार्य मंत्रालय द्वारा अधिसूचित राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और सदस्यों (सेवा शर्त्तें एवं पदावधि) नियम, 2004 तहत नियंत्रित होती हैं। ये नियम अन्य बातों के साथ-साथ प्रावधान करते हैं कि –
- अध्यक्ष की नियुक्ति अनुसूचित जनजातियों के ऐसे प्रतिष्ठित सामाजिक-राजनैतिक कार्यकर्ताओं में से की जाएगी जो अपने विशिष्ट व्यक्तित्व और नि:स्वार्थ सेवा के द्वारा अनुसूचित जनजातियों के बीच विश्वास पैदा करते हैं।
- उपाध्यक्ष्ा और अन्य सभी सदस्य जिनमें कम से कम दो अनुसूचित जनजातियों के व्यक्तियों में से नियुक्त किए जाएंगे
- कम से कम एक अन्य सदस्य, महिलाओं में से नियुक्त किया जाएगा।
- अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और अन्य सदस्य ऐसी तारीख से, जिसको वह ऐसा पद ग्रहण करता है, तीन वर्ष की अवधि के लिए पद धारण करेगा।
- अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और अन्य सदस्य दो पदावधियों से अधिक के लिए नियुक्ति के पात्र नहीं होंगे।
- अध्यक्ष भारत सरकार के मंत्रिमंडल सदस्य की पंक्ति का होगा तथा उपाध्यक्ष्ा राज्य मंत्री की पंक्ति का और सदस्य भारत सरकार के सचिव की पंक्ति के होंगे।
- अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और अन्य सदस्य ऐसे वेतन और भत्तों के हकदार होंगे जो भारत सरकार के सचिव हो अनुज्ञेय है।
परन्तु अध्यक्ष किरायामुक्त आवास का भी हकदार होगा।
राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग का गठन कब हुआ था?
पहला राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (एनसीएसटी) मार्च, 2004 में गठित हुआ था और श्री कुंवर सिंह, अध्यक्ष (जिन्होंने दिनांक 15-03-2004 को कार्यभार ग्रहण किया), श्री तापीर गाओ, उपाध्यक्ष (जिन्होंने दिनांक 03-03-2004 को कार्यभार ग्रहण किया), श्री लामा लोबजंग (जिन्होंने दिनांक 02-03-2004 को कार्यभार ग्रहण किया), श्रीमती प्रेम बाई मांडवी, (जिन्होंने दिनांक 04-03-2004 को कार्यभार ग्रहण किया) और श्री बुदरू श्री निवासुलु (जिन्होंने दिनांक 11-03-2004 को कार्यभार ग्रहण किया) सदस्य के रूप में शामिल थे। उपाध्यक्ष का कार्यालय श्री तापीर गाओ के पदत्याग करने के परिणामस्वरूप दिनांक 31-03-2004 से रिक्त पड़ा हुआ था और दिनांक 29-05-2006 तक रिक्त था जिस तिथि को श्री गजेन्द्र सिंह राजूखेड़ी ने उपाध्यक्ष के कार्यालय को संभाला। जबकि श्री कुंवर सिंह, अध्यक्ष ने दिनांक 14-02-2007 (अपराह्न) को अपने कार्यालय से पद त्याग किया, पहले आयोग के सदस्यों ने अपनी तीन वर्षों की अवधि को पूरा करने की तिथि से मार्च, 2007 में अपने कार्यालय से पद त्याग किया। श्री गजेन्द्र सिंह राजूखेड़ी ने भी दिनांक 15-05-2007 को उपाध्यक्ष के कार्यालय से पद त्याग किया।
दूसरे आयोग में अध्यक्ष के रूप में श्रीमती उर्मिला सिंह, उपाध्यक्ष के रूप में श्री मोरिस कुजुर, सदस्यों के रूप में श्री छेरिंग सम्फेल तथा श्री वरिस सीय्म मारीयाव शामिल थे। (श्रीमती उर्मिला सिंह ने दिनांक 18-06-2007 को कार्यभार ग्रहण किया और हिमाचल प्रदेश की राज्यपाल नियुक्त होने के परिणामस्वरूप दिनांक 24-01-2010 को पदत्याग किया), श्री मोरिस कुजुर, उपाध्यक्ष दिनांक 25-04-2008 से लेकर 24-04-2011 तक कार्यालय में रहें, श्री छेरिंग सम्फेल, सदस्य जिन्होंने दिनांक 14-06-2007 को कार्यभार ग्रहण किया तथा दिनांक 13-06-2010 को अपने कार्यालय से पदत्याग किया। उसी तरह श्री वरीस सीय्म मारीयाव, सदस्य जिन्होंने दिनांक 17-04-2008 को कार्यभार ग्रहण किया तथा तीन वर्ष की कार्य अवधि पूरा करने के पश्चात् दिनांक 16-04-2011 को पदत्याग किया।
तीसरे आयोग में, डा. रामेश्वर उरांव ने दिनांक 28-10-2010 को अध्यक्ष का कार्यभार ग्रहण किया, श्रीमती के.कमला कुमारी ने दिनांक 21-07-2010 को सदस्य का कार्यभार ग्रहण किया जबकि श्री भैरू लाल मीणा ने दिनांक 28-10-2010 को सदस्य का कार्यभार ग्रहण किया। आयोग में उपाध्यक्ष तथा एक सदस्य का पद रिक्त पड़ा रहा। श्रीमती के कमला कुमारी अपनी तीन वर्ष की कार्य अवधि पूरा करने के पश्चात् दिनांक 20-07-2013 को कार्यालय से पदत्याग किया, डा0 रामेश्वर उरांव, अध्यक्ष अपनी तीन वर्ष की कार्य अवधि को पूरा करने के पश्चात् दिनांक 27-10-2013 को अपने कार्यालय से पदत्याग किया और श्री भैरू लाला मीणा, सदस्य ने दिनांक 28-10-2013 (पूर्वाह्न) को अपने कार्यालय को पदत्याग किया।
डा0 रामेश्वर उरांव को अध्यक्ष, राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के रूप में तीन वर्ष की दूसरे सत्र के साथ पुनः नियुक्त किया गया। उसी तरह श्रीमती के.कमला कुमारी और श्री भैरू लाल मीणा को भी आयोग के सदस्य के रूप में तीन वर्ष की दूसरे सत्र के साथ पुनः नियुक्त किया गया। सभी ने दिनांक 01-11-2013 को संबंधित कार्यालय का कार्यभार ग्रहण किया। श्री रवि ठाकुर, एमएलए, हिमाचल प्रदेश विधानसभा को आयोग के उपाध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया। श्री रवि ठाकुर ने दिनांक 14-11-2013 को कार्यभार ग्रहण किया। तथापि, दिनांक 17-07-2014 को श्रीमती के. कमला कुमारी तथा दिनांक 19-08-2014 को श्री और भैरू लाल मीणा का आकस्मिक निधन हो जाने के कारण, आयोग में सदस्यों के तीन पद वर्तमान में रिक्त पड़े हैं।
राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग की संगठनात्मक संरचना
राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग, नई दिल्ली स्थित मुख्यालय और अपने छ: क्षेत्रीय कार्यालयों से अपना कार्य करता है। आयोग मुख्यालय का सचिवालय छठा तल, बी विंग, लोकनायक भवन, खान मार्केट, नई दिल्ली– 110030 में स्थित है।
मुख्यालय का सचिवालय
मुख्यालय में निम्नलिखित छ: एकक हैं:-
(i) |
प्रशासन |
(ii) |
समन्वय एकक |
(iii) |
राजभाषा एकक |
(iv) |
अनुसंधान एकक-I |
(v) |
अनुसंधान एकक- II |
(vi) |
अनुसंधान एकक- III |
(vii) |
अनुसंधान एकक- IV |
मुख्य कार्यात्मक एककों में अनुसंधान एकक-I, अनुसंधान एकक- II, अनुसंधान एकक- III और अनुसंधान एकक- IV शामिल हैं, ये चार अनुसंधान एकक मंत्रालयों/विभागों (केन्द्रीय लोक क्षेत्र उद्यम और अन्य संगठन/कार्यालय और उनके प्रशासनिक नियंत्रणाधीन अन्य सहित) और राज्य एवं संघ शासित क्षेत्रों में कार्य के वितरण के अनुसार अनुसूचित जनजाति जनजातियों के संबंध में समाजार्थिक एवं शैक्ष्ाणिक विकास, सेवा सुरक्ष्ाण एवं अत्याचार से संबंधित सभी मामलों का निपटान करते हैं। समन्वय एकक आयोग में संसद, आरटीआई, अनुसंधान एवं वार्षिक रिपोर्ट से संबंधित मामलों में अन्य एककों के साथ समन्वय स्थापित करने के उत्तरदायी है। मुख्यालय का संगठनात्मक चार्ट परिशिष्ट-2 पर उपलब्ध है।
क्षेत्रीय कार्यालय
राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के छ: क्षेत्रीय कार्यालय हैं। वे क्षेत्रीय कार्यालयों के अधिकार क्षेत्र में राज्यों और संघ शासित क्षेत्रों में रह रहे अनुसूचित जनजातियों के सुरक्षण के अधिकारों या अधिकारों के उल्लंघन से संबंधित अन्य मामलों एवं शिकायतों का निपटारा करते हैं। क्षेत्रीय कार्यालय राज्यों/संघ शासित क्षेत्रों में अनुसूचित जनजाति कल्याण से संबंधित मार्गदर्शी मुद्दे एवं नीति निर्माण पर भी नजर रखते हैं और आवधिक रूप से हुई प्रगति के बारे में आयोग को भी सूचित करते हैं। अनुसूचित जनजातियों के हितों को प्रभावित करने वाले किसी राज्य सरकार/संघ शासित प्रशासन द्वारा लिए गए नीति निर्णय आवश्यक कार्रवाई हेतु संबंधित प्राधिकारियों की जानकारी में लाये जाते हैं। आयोग के क्षेत्रीय कार्यालय से अपेक्षा की जाती है कि वे राज्य प्रशासनों के साथ वार्ता करे और यह देखने के लिए उनका मार्गदर्शन करे कि योजना एवं नीतियां बनाते समय अनुसूचित जनजातियों के हित संरक्षित रहें। क्षेत्रीय कार्यालय जनजातीय उप-योजना से निधियों के परिवर्तन पर नजर रखने के साथ-साथ अनुसूचित जनजातियों से संबंधित योजनाओं के लिए आवंटित निधियों के उपयोग की भी निगरानी करते हैं। क्षेत्रीय कार्यालयों से यह भी अपेक्षा की जाती है कि वे लक्षित समूहोंकी समाजार्थिक स्थिति पर उनके प्रभाव और अनुसूचित जनजाति जनजातियों के कल्याण के लिए कार्यान्वित विभिन्न विकास कार्यक्रमों के कार्यकरण के मूल्यांकन के लिए संबंधित राज्यों/संघ शासित क्षेत्रों में मूल्यांकन एवं अन्य अध्ययनों को करने के लिए राज्य सरकारों और संघ शासित प्रशासनों के साथ सम्पर्क करके सहयोग करें। अध्ययनों के निष्कर्षों को उपचारात्मक मापदण्डों के लिए संबंधित राज्य सरकारों के ध्यान में लाये।
प्रत्येक क्षेत्रीय कार्यालय अपने क्षेत्राधिकार के अन्तर्गत प्रत्येक राज्यों/संघ शासित क्षेत्रों में अनुसूचित जनजातियों के कल्याण से संबंधित प्रमुख मुद्दों को उजागर करते हुए उनके द्वारा की जाने वाली गतिविधियों पर आयोग को आवधिक रिपोर्ट भेजते हैं। इन रिपोर्टों में राज्य में विकास के बारे में उपयोगी सूचना होती है और आयोग उपयुक्त कार्रवाई करने के लिए सरकार को समुचित सुझाव की सिफारिश करने के लिए विभिन्न राज्यों और राष्ट्रीय परिस्थितियों के समग्र आलोक में समर्थ होता है।
राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग द्वारा अपनायी गयी प्रक्रिया
संविधान के अनुच्छेद 338क (4) के अन्तर्गत सशक्त, आयोग ने अपनी प्रक्रिया के नियम बनाये हैं और प्रक्रिया के नियमों का अनुपालन करते हुए अपने अधिदेश को पूरा करने का प्रयास करता है।
आयोग द्वारा अपनायी गयी पहुंच एवं कार्य प्रणाली
सामान्य
आयोग अनुसूचित जनजातियों के सदस्यों या उनके संघों आदि से बहुत से अभ्यावेदन प्राप्त करता है। ये अभ्यावेदन/याचिकाएं (i) सेवाओं में आरक्षण अनुदेशों का उल्लंघन, (ii) अनुसूचित जनजातियों के समाजार्थिक विकास से संबंधित समस्याएं जैसे शैक्षणिक संस्थानों में दाखिला, भूमि हस्तांतरण मामले आदि और (iii) गैर अनुसूचित जनजाति व्यक्तियों द्वारा अनुसचित जनजाति के व्यक्तियों पर अत्याचार आदि से संबंधित हैं। ये अभ्यावेदन यह अनुरोध करते हुए आयोग द्वारा केन्द्र सरकार या राज्य सरकारों के संबंधित संगठनों को भेजे जाते हैं कि वे निर्धारित समय सीमा के अन्तर्गत सम्पूर्ण तथ्यों की रिपोर्ट आयोग को भेजें। संबंधित संगठनों द्वारा भेजे गए तथ्यों की आयोग द्वारा जांच की जाती है और यदि आयोग महसूस करता है कि यदि संविधान या किसी अन्य विधि या सरकार के किसी आदेश में अनुसूचित जनजातियों के लिए उपलब्ध सुरक्षणों का उल्लंघन हुआ है तो वह संबंधित संगठन को सुधारात्मक उपाय अपनाने की सलाह देता है। संबंधित संगठन यह भी सलाह दी जाती है कि वह निर्धारित समय सीमा के भीतर आयोग की सिफारिशों/टिप्पणियों पर अनुवर्ती कार्रवाई करे और की गई कार्रवाई की स्थिति से आयोग को अवगत कराएं। यदि निर्धारित अवधि के भीतर आयोग के पत्र का उत्तर प्राप्त नहीं होता है तो आयोग संबंधित संगठन के वरिष्ठ अधिकारियों को आयोग के समक्ष उपस्थित होने और अभ्यावेदन में उठाये गये बिन्दुओं के संदर्भ में अपनी स्थिति को स्पष्ट करने के लिए कहता है। इन सुनवाईयों के कार्यवृत्त उसी दिन या एक सप्ताह के भीतर चर्चा के निष्कर्षों को अभिलेखित किया जाता है उसके बाद उसकी एक कोपी समुचित कार्रवाई करने के लिए उनको भेजी जाती है और उनके द्वारा की गई कार्रवाई से आयोग को अवगत कराया जाता है।
अत्याचार संबंधी मामले
जब कभी अनुसूचित जनजातियों के व्यक्तियों के विरूद्ध अत्याचार की किसी घटना के बारे में आयोग को जानकारी प्राप्त होती है, आयोग तुरन्त संबंधित राज्य और जिले के प्रशासनिक तंत्र और प्रवृत्त विधि के सम्पर्क में आता है और घटना का विवरण तथा जिला प्रशासन द्वारा की गई कार्रवाई का विवरण प्राप्त करता है:
- क्या सूचना प्राप्त होने पर अत्याचार की घटना के स्थान का जिले के कलेक्टर और पुलिस अधीक्षक द्वारा तुरन्त दौरा किया गया है ?
- क्या स्थानीय थाने में उचित प्राथमिकी पंजीकृत है ?
- क्या शिकायकर्त्ता द्वारा उल्लिखित सभी व्यक्तियों के नाम प्राथमिकी में शामिल किए गए हैं।
- क्या अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति(अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के उपबंधों के अनुसार एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी द्वारा अन्वेषण प्रारंभ किया गया है ?
- क्या दोषियों को समय गवाएं बिना गिरफ्तार किया गया है ?
- क्या न्यायालय में, नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1955 तथा अनुसूचित जाति और अनूसूचित जनजाति(अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के साथ भारतीय दण्ड संहिता की संगत धाराओं का उल्लेख करते हुए, उचित आरोप पत्र दाखिल किया गया हैं ?
- क्या विशेष न्यायालयों द्वारा मामले की न्यायिक जांच की जा रही है ?
- क्या इन मामलों को निपटाने के लिए विशेष लोक अभियोजक नियुक्त किए गए हैं ?
- क्या पुलिस गवाहों को प्रस्तुत करने में न्यायालयों को सहायता प्रदान करती है तथा यह देखती है कि न्यायालयों द्वारा दोषियों को उचित सज़ा दी जाती है।
आयोग, जहां कहीं संभव होगा, मामले की गंभीरता तथा परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए, प्रबन्धों का निरीक्षण करने तथा राज्य सरकार द्वारा पीडि़तों के परिवारों को आवश्यक राहत एवं पुनर्वास देने और सान्त्वना देने और उन में आत्म विश्वास स्थापित करने के लिए, घटना के स्थान का दौरा करेगा। आयोग यह सुनिश्चित करने के लिए भी अनुवीक्षण करता है:-
- पीड़ितो को उचित चिकित्सा सहायता समय पर उपलब्ध कराई जाती है।
- ऐसी घटनाओं के पीड़ितों के लिए, पुलिस दल तैनात करके तथा गश्त आदि लगाकर, पुलिस सुरक्षा पर्याप्त सुरक्षा व्यवस्था की जाती है।
- यह देखने के लिए कि पीड़ितों को, विधि के उपबन्धों के अनुसार, उचित मुआवजा दिया जाता है।
जांच की प्रक्रिया
संविधान के अनुच्छेद 338क के खण्ड 5 के उपखण्ड (ख) के उपबंध के अनुसार, आयोग से अनुसूचित जनजातियों के अधिकारों के वंचन एवं सुरक्षणों के उल्लंघन के संबंध में विशिष्ट शिकायतों की जांच की अपेक्षा की जाती है। अर्थपूर्ण सीमा के भीतर इस कार्य को पूरा करने के लिए आयोग को समर्थ बनाने के विषय में,आयोग अनुसूचित जनजातियों के व्यक्तियों को अपील करना चाहेगा कि अपनी शिकायतों के समाधान के लिए आयोग को कोई विशिष्ट शिकायत प्रस्तुत करने से पहले उन्हें स्पष्ट रूप से कहना चाहिए कि उनके अधिकारों और सुरक्षणों का किस प्रकार से उल्लंघन हुआ है। आयोग यह नहीं चाहेगा कि वे असत्य और असंगत शिकायतों के बोझ से भारित हो।
सरकारी विभागों, सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रमों और स्वायत्तशासी निकायों में कार्यरत अनुसूचित जनजातियों के कर्मचारियों से नियमित रूप अत्यधिक अभ्यावेदन प्राप्त होते हैं। आयोग उनसे यह जानना चाहेगा कि क्या वे तब अपनी सेवा शिकायतों की जांच करवाने की स्थिति में है यदि अनुसूचित जनजातियों के लिए पद और सेवाओं में आरक्षण से संबंधित अधिनियमों के किसी प्रावधानों (जहां कहीं ऐसे अधिनियम प्रचलन में है) का उल्लंघन हुआ है या कामिर्क एवं प्रशिक्षण विभाग, लोक क्षेत्र उपक्रमों के संबंध में लोक उद्यम विभाग, वित्तीय संस्थानों के संदर्भ में वित्तीय सेवा विभाग (वित्त मंत्रालय) के बैंकिंग प्रभाग इत्यादि द्वारा जारी आरक्षण मामलों से संबंधित ब्राउचर में उल्लिखित आदेशों का उल्लंघन हुआ है।
आयोग के समक्ष शिकायतें दाखिल करते समय निम्नलिखित पहलूओं को ध्यान में रखना अपेक्षित है:-
- शिकायत सीधे अध्यक्ष/उपाध्यक्ष, राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग, नई दिल्ली को सम्बोधित होनी चाहिए। ऐसे याचिका/अभ्यावेदन पर कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी जो किसी अन्य प्राधिकारी को सम्बोधित हो और राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग को मात्र पृष्ठांकित की गई हो।
- शिकायतकर्ता को अपनी पहचान और पूरा पता लिखना चाहिए तथा अभ्यावेदन पर हस्ताक्षर करना चाहिए। बिना हस्ताक्षर के अभ्यावेदन पर कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी।
- शिकायत स्वच्छ लिखित हो या टंकित हो और जहां कहीं आवश्यक हो प्रमाणित दस्तावेजों से समर्थित हो।
- ऐसे मामलों पर कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी जो न्यायालय के विचाराधीन या जिनमें पहले ही अंतिम निर्णय आ चुका है और इसलिए ऐसे मामलों को आयोग को भेजने की आवश्यकता नहीं है।
- आयोग विजिलेंस एवं अनुशासनात्मक मामलों में भी हस्तक्षेप नहीं करेगा जहां ऐसे मामलों में अनुसूचित जनजातियों से संबंधित कर्मचारियों को कोई सुरक्षण उपलब्ध नहीं है और ऐसे मामलों में आयोग एक अपीलीय प्राधिकारी नहीं है और सक्षम प्राधिकारियों द्वारा पुनर्विचारण के लिए अपील करने के लिए संबंधित सेवा नियमावली में एक अच्छी तरह परिभाषित प्रक्रिया दी गई है। यदि आयोग यह पाता है कि अनुशासनात्मक/विजिलेंस मामलों में निर्धारित प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया है और अभ्यर्थी इस कारण नुकसान में है या सजा की मात्रा अपराध की गंभीरता के अनुपात में नहीं है या अभ्यर्थी अनुसूचित जनजाति का व्यक्ति होने के कारण उत्पीडि़त किया गया है। तो आयोग पीडि़त अनुसूचित जनजाति अधिकारी के प्रार्थना पत्र पर कार्रवाई कर सकता है और मामले को संबंधित संगठन के साथ उठा सकता है।
- आयोग अधिकारी की वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट में प्रतिकुल टिप्पणी के गुण से संबंधित मामलों में सामान्यतया हस्तक्षेप नहीं करेगा क्योंकि अपने कार्य निष्पादन के आकलन में अनुसूचित जनजातियों से संबंधित अधिकारी को कोई सुरक्षण उपलब्ध नहीं कराया गया है और सक्षम प्राधिकारियों के समक्ष प्रतिकुल टिप्पणी के विरूद्ध मामले को प्रस्तुत करने के लिए एक निर्धारित प्रक्रिया है।
- समूह क और समूह ख पद धारी अनुसूचित जनजाति अधिकारियों के लिए स्थानान्तरण और तैनाती के मामलोंमें कोई रियायत उपलब्ध नहीं है और इसलिए आयोग ऐसे अधिकारियों का उसी संगठन के एक कार्यालय से दूसरे कार्यालय में उसी शहर में या एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानान्तरण से उत्पन्न शिकायतों पर कोई कार्रवाई नहीं करेगा। फिर भी यदि आयोग यह पाता है कि उक्त अनुसूचित जनजाति अधिकारी का स्थानान्तरण नीति का स्पष्ट उल्लंघन है (यदि उस संगठन में कोई नीति है) या इस आधार पर अधिकारी का उत्पीड़न किया गया है कि वह अनुसूचित जनजाति जैसे कमजोर वर्ग से संबंधित रखता है तो ऐसे पीडि़त अनुसूचित जनजाति अधिकारी के आवेदन पर विचार किया जा सकता है और मामले को संबंधित संगठन के साथ उठाया जा सकता है।
अनुसूचित जनजाति आयोग की शक्तियां
झखंड(५)केउपखंड(क) में निर्दिष्ट मामलोंका अन्वेषण करते समय अथवा उपखंड (ख) में निर्दिष्ट किसी शिकायत की जांच करते समय आयोग को दीवानी अदालत की वे शक्तियां प्राप्त हैं, जिसे उसे किसी मुकदमेंको चलाने के लिए प्राप्त होती है, विशेष कर निम्न लिखित मामलोंमें-
- भारत के किसी भी भाग से किसी व्यक्तिको ''समन'' करना और हाजिर कराना तथा शपथ पर उसकी परीक्षा करना
- किसी दस्तावेज का प्रकटीकरण और पेश किया जाना,
- शपथ पर साक्ष्य ग्रहण करना,
- किसी न्यायालय या कार्यालय से किसी लोक अभिलेख या उसकी प्रति को मंगाना,
- साक्षियों और दस्तावेजों की परीक्षा के लिए कमीशन जारी करना,
- कोई अन्य विषय जिसे राष्ट्रपति, नियम द्वारा, अवधारित करें।
कार्यक्रमों की समीक्षा
पुलिस प्राधिकारियों और न्यायालयों द्वारा अत्याचार (अनुसूचित जनजातियों के व्यक्तियों पर) के मामलों के अन्वेषण एवं निपटान और विभिन्न विकास स्कीमों के कार्यान्वयन स्तर की निगरानी एवं मूल्यांकन के बारे में आयोग राज्यों और संघ शासित क्षेत्रों में दौरों के माध्यम से मुख्य सचिवों एवं अन्य वरिष्ठ अधिकारियों के साथ विस्तृत राज्य स्तर समीक्षा बैठकों के आयोजन के द्वारा राज्यों/संघ शासित सरकारों के साथ वार्तालाप करता है। ये बैठकें सामान्यतया जनजातीय बस्तियों होटलों आश्रम स्कूलों के दौरों के साथ होती है और विकासात्मक परियोजनाओं के प्रभाव पर उनके साथ वार्तालाप होती है। आयोग अनुसूचित जनजातियों पर अत्याचार के मामलों की जांच और विकासात्मक योजनाओं के प्रभाव के मूल्यांकन के लिए जिला स्तर अधिकारियों के साथ भी समीक्षा बैठकें करता है और दुर्गम क्षेत्रों में रह रहे उन आदिवासियों सहित सभी जनजातियों के लाभ के प्रवाह को सुनिश्चित करने की दृष्टि से परियोजनाओं के बेहतर और अधिक प्रभावी उपचारात्मक कार्रवाई करने की सलाह देता है और जिला प्रशासन या न्यायालयों में लंबित भूमि हस्तान्तरण आदि से संबंधित मामलों और अत्याचार के निपटान और जांच के मामलों पर अतिशीघ्र कार्रवाई करने की सलाह भी देता है।
आयोग अनुसूचित जनजातियों के समाजार्थिक विकास के लिए विकासात्मक परियोजनाओं के कार्यान्वयन स्तर के आकलन केलिए और पदों के विभिन्न वर्गों की नियुक्ति में आरक्षण अनुदेशों के कार्यान्वयन को परिनिर्धारित करने के लिए वित्तीय संसथानों सहित केन्द्र सरकार और विभिन्न केन्द्रीय लोक क्षेत्र उद्यमों के प्रशासनिक नियंत्रण के अन्तर्गत कार्यरत संगठनों/कार्यालयों के साथ भी समीक्षा बैठकें करता है।
आयोग के साथ संघ एवं राज्य सरकारों द्वारा परामर्श:
संविधान के अनुच्छेद 338क के खण्ड 9 के अनुसार संघ और प्रत्येक राज्य सरकार अनुसूचित जनजातियों को प्रभावित करने वाले सभी प्रमुख नीतिगत मामलों पर आयोग के साथ परामर्श करेंगी। इस संवैधानिक प्रावधान के अनुसरण में मंत्रिमंडल सचिवालय ने अपने कार्यालय ज्ञापन 16-02-2012 में संघ सरकार के सभी मंत्रालयों एवं कार्यालयों के लिए निम्नलिखित निर्देश जारी किए हैं:
प्रयोजित मंत्रालयों/विभागों को यह सुनिश्चित करने के लिए सलाह दी जाती है कि मंत्रिमंडल/मंत्रिमंडल समितियों के विचारण के लिए ऐसी टिप्पणियों को अंतिम रूप देने से पहले आयोग के साथ संबद्ध प्रशासनिक मंत्रालय/विभाग के माध्यम से राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग और राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग जैसा भी मामला हो, के साथ आवश्यक रूप से परामर्श किया जाएगा। ऐसे सभी मामलों में, संबंधित प्रशासनिक मंत्रालय/विभाग संबंधित राष्ट्रीय आयोग के विचारों को रखेगा जैसा भी मामला हो प्रयोजित मंत्रालय/विभाग को ऐसे मुद्दों पर उनके अंतिम विचार/टिप्पणियां प्रेषित करने से पहले मंत्रालय/विभाग के प्रभारी मंत्री के समक्ष रखे जाएगे। यह भी निर्णय किया गया कि आयोग से प्रशासनिक रूप से संबद्ध मंत्रालय/विभाग के विचारों के साथ संबंधित आयोग के मूल विचार भी प्रयोजित मंत्रालय/विभाग द्वारा उस पर प्रत्युत्तर सहित मंत्रिमंडल/मंत्रिमंडल समितियों के विचारण के लिए रखे जाएगे।
आयोग का वार्षिक प्रतिवेदन
अनुच्छेद 338क का खंड 5(घ) आयोग को अधिदेश देता है कि “उन सुरक्षणों के कार्यकरण के बारे में प्रति वर्ष, और ऐसे अन्य समयों पर जो आयोग ठीक समझे, राष्ट्रपति को रिपोर्ट प्रस्तुत करें“ तथा खंड 5(ड.) में व्यवस्था है “ऐसी रिपोर्टों में उन उपायों के बारे में जो उन सुरक्षणों के प्रभावपूर्ण कार्यान्वयन के लिए संघ या किसी राज्य द्वारा किए जाने चाहिए तथा अनुसूचित जनजातियों के संरक्षण, कल्याण और सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए अन्य उपायों के बारे में सिफारिश करें“
अनुच्छेद 338क के खंड 6 में व्यवस्था है कि, “राष्ट्रपति ऐसे सभी प्रतिवेदनों को संघ से संबंधित सिफारिशों पर की गई या प्रस्तावित कार्रवाई को और किन्हीं ऐसी सिफारिशों की अस्वीकृति के लिए, यदि कोई हों, कारणों को स्पष्ट करने वाले ज्ञापन सहित संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष रखवायेंगे।
अनुच्छेद 338क के खंड 7 में व्यवस्था है कि, “जहां कोई ऐसा प्रतिवेदन, या उसका कोई भाग, किसी ऐसे विषय से संबंधित है जिसका किसी राज्य सरकार से संबंध है तो ऐसे प्रतिवेदन की एक प्रति उस राज्य के राज्यपाल को भेजी जाएगी जो उसे राज्य से संबंधित सिफारिशों पर की गई कार्रवाई या प्रस्तावित कार्रवाई को, और किन्हीं ऐसी सिफारिशों को अस्वीकृति के लिए, यदि कोई हों, कारणों को स्पष्ट करने वाले ज्ञापन सहित राज्य के विधान-मंडल के समक्ष रखवाएंगे।“
संविधान के अनुच्छेद 338क के खंड 5(घ) के उपबंधों के अनुसार, आयोग का यह कर्तव्य है कि वह अनुसूचित जनजातियों के कल्याण एवं संरक्षण के लिए संघ और राज्यों द्वारा संवैधानिक सुरक्षणों एवं मापदण्डों के कार्यकरण पर वार्षिक रूप से एक रिपोर्ट प्रस्तुत करेगा। राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग ने अब तक आठ वार्षिक रिपोर्ट एवं एक विशेष रिपोर्ट राष्ट्रपति महोदय को प्रस्तुत की है। वर्ष 2004-05 एवं 2005-06 के लिए प्रथम प्रतिवेदन अगस्त, 2006 में प्रस्तुत किया गया था तथा वर्ष 2006-07 के लिए दूसरा प्रतिवेदन सितम्बर, 2008 में प्रस्तुत किया गया है। वर्ष 2007-08 के लिए तीसरा प्रतिवेदन मार्च, 2010 में प्रस्तुत किया गया है तथा वर्ष 2008-09 के लिए चौथा प्रतिवेदन अगस्त, 2010 में प्रस्तुत किया गया है। वर्ष 2009-10 के लिए पाँचवां प्रतिवेदन दिनांक 13.07.2011 को प्रस्तुत की गई। इसके अलावा “जनजातीय विकास और प्रशासन के लिए सुशासन“ विषय पर एक विशेष प्रतिवेदन दिनांक 18.06.2012 को प्रस्तुत किया गया है। आयोग ने अपनी वर्ष 2010-11 के लिए छठा प्रतिवेदन 25 अक्टूबर, 2013 में प्रस्तुत किया गया है तथा वर्ष 2011-12 के लिए सातवां प्रतिवेदन 20 फरवरी, 2015 में प्रस्तुत किया।
संविधान के अनुच्छेद 338क के खण्ड 6 के अन्तर्गत प्रावधानों को पूरा करने के लिए, आयोग के दो प्रतिवेदन तथा विशेष प्रतिवेदन ही अभी तक संसद के दोनों सदनों में प्रस्तुत किये गये हैं। यह तीनों प्रतिवेदन आयोग की वेबसाइट (http//:ncst.nic.in) तथा जनजातीय कार्य मंत्रालय की वेबसाइट (http//:tribal.gov.in) पर उपलब्ध है। अन्य प्रतिवेदन अभी तक संसद के दोनों सदनों के पटल पर नहीं रखे गये हैं, अतः उन प्रतिवेदनों की प्रतियाँ सार्वजनिक रूप से उपलब्ध नहीं कराई जा सकतीं।
हमसे सम्पर्क करें-
किसी पूछताछ या शिकायत के लिए लिखें:-
सचिव
राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग
छठी मंजिल बी विंग लोकनायक भवन खान मार्केट नई दिल्ली-110003
अधिक जानकारी के लिए आयोग की वेबसाइट http//:ncst.nic.in देखें।